क्या अरब से जमीन लेकर आए थे मुस्लिम आक्रांता? वक्फ बोर्ड के बढ़ते दावों पर बढ़ता विवाद
भारत में वक्फ बोर्ड के भूमि विवादों ने हाल के वर्षों में कई सवाल खड़े किए हैं। क्या जब मुस्लिम आक्रांता भारत आए, तो वे अपने साथ अरब से जमीन भी लेकर आए थे? वक्फ बोर्ड के लगातार दावे और संपत्तियों पर बढ़ते विवादों को देखते हुए यही लगता है। यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है, जब वक्फ बोर्ड बिना किसी ठोस दस्तावेज या प्रमाण के सार्वजनिक, निजी और धार्मिक स्थलों पर अपना अधिकार जताता है।
हाल ही में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के प्रमुख मौलाना बदरुद्दीन अजमल का बयान काफी चर्चा में रहा, जिसमें उन्होंने दावा किया कि नई संसद वक्फ की जमीन पर बनी है, और यह संपत्ति उनके पूर्वजों की है। इसके अलावा, उन्होंने नई संसद भवन के आसपास के क्षेत्र, वसंत विहार और एयरपोर्ट तक को वक्फ की संपत्ति बताया। यह बयान न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि भारत की भूमि व्यवस्था और न्यायिक प्रणाली पर सवाल खड़ा करता है।
देश भर में वक्फ बोर्ड के दावों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। केरल के चेराई गांव से लेकर दिल्ली के कई मंदिरों तक, वक्फ बोर्ड ने विभिन्न संपत्तियों पर अधिकार जताया है। केरल के मुनंबम उपनगर में मछुआरों के एक छोटे से गांव चेराई पर भी वक्फ बोर्ड ने दावा किया, जिसके कारण वहां के 610 परिवार कानूनी पचड़े में फंस गए हैं। उन्हें न तो अपनी जमीन बेचने का अधिकार है, न ही वे लोन ले सकते हैं।
दिल्ली में तो वक्फ बोर्ड ने छह प्रमुख मंदिरों तक पर दावा ठोक दिया है, जो वक्फ बोर्ड के अस्तित्व में आने से पहले से ही मौजूद थे। इतना ही नहीं, डीडीए दफ्तर, डीटीसी बस अड्डा और यहां तक कि एमसीडी के कूड़ाघर तक को अपनी संपत्ति बताने से वक्फ बोर्ड नहीं हिचक रहा।
यह मामला तब और गंभीर हो जाता है जब मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में वक्फ बोर्ड ने पूरे गांवों पर अपना दावा ठोक दिया। मध्य प्रदेश के गोविंदपुर गांव में वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि गांव की जमीन उनकी है, जबकि गांव की 90% आबादी हिंदू है।
वक्फ अधिनियम 1995 के तहत वक्फ बोर्ड को दान की गई संपत्तियों को वक्फ संपत्ति घोषित करने का अधिकार है। लेकिन इसके दुरुपयोग के कारण सरकार और स्थानीय लोगों के बीच विवाद बढ़ते जा रहे हैं। एएसआई (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) ने भी जेपीसी (जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी) में आपत्तियां दर्ज कराई हैं, जिसमें बताया गया कि वक्फ बोर्ड बिना किसी सबूत के संरक्षित स्मारकों पर भी दावा कर रहा है।
कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की उच्च न्यायालयों ने भी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज करते हुए सरकार की संपत्तियों पर उनके अधिकार को मान्यता देने से इंकार कर दिया है।
दरअसल, वक्फ बोर्ड जिस तरह से अपने अधिकारों का विस्तार करता जा रहा है, वह सार्वजनिक शांति और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खतरा बनता जा रहा है। धारा 40 के तहत, वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को अपनी संपत्ति घोषित कर सकता है, यदि वह उसे वक्फ संपत्ति समझता है। यही प्रावधान सबसे अधिक विवाद का कारण बनता है और इसे सरकार संशोधित करने की कोशिश कर रही है।
मौलाना बदरुद्दीन अजमल जैसे नेता, जो वक्फ बिल का विरोध कर रहे हैं, एक माहौल बना रहे हैं कि यह संशोधन इस्लाम विरोधी है। हालांकि, सच्चाई यह है कि यदि वक्फ बोर्ड सही ढंग से काम कर रहा होता, तो सरकार को इसमें संशोधन करने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
आज वक्फ बोर्ड का कानून जिस स्थिति में है, वह निजी संपत्ति के अधिकारों का उल्लंघन करता है और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देता है। वक्फ बोर्ड को यह समझना होगा कि इस्लाम भारत में जमीन लेकर नहीं आया था, और उन्हें भारतीय नागरिकों की संपत्तियों पर बेवजह दावे ठोकने से बचना चाहिए।
सरकार को चाहिए कि वह वक्फ अधिनियम में ऐसे संशोधन लाए, जो निजी संपत्तियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करें और वक्फ बोर्ड के असीमित अधिकारों पर रोक लगाएं। देश के नागरिकों को भी इस मुद्दे पर सजग रहना चाहिए ताकि किसी भी वर्गविशेष के द्वारा भूमि पर गलत दावा न किया जा सके।
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